सद्गुरु कबीर साहब का आगमन (जन्म )
सद्गुरु कबीर साहब काशी के लहरतारा सरोवर में प्रकट हुए-
सद्गुरु कबीर के जन्म के संबंध में अनेक मत -
सद्गुरु कबीर साहब के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कबीर पंथ के अनुसार काशी के लहरतारा सरोवर में एक सुंदर कमल-पुष्प के ऊपर सद्गुरु कबीर प्रकट हुए थे। कुछ लोगों का कहना है कि उनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी से हुआ, जिसे भूलवश संत रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। कुछ अन्य लोग कहते हैं कि उनका जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था और स्वामी रामानंद जी के प्रभाव में वे हिन्दू धर्म में दीक्षित हो गए। उनका इस धरती में आना चाहे जैसे भी हो, वे मानवता के उद्धार के लिए ही आए, इसमें कोई दो मत नहीं है।
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का पड़ा रहन दो म्यान।।
सद्गुरु कबीर साहब का आगमन -
गगन मंडल से उतरे सद्गुरु पुरुष कबीर ।
जलज माहिं पौढ़न किए दोउ दीनन के पीर।।
कबीर पंथ के अनुसार विश्ववंदनीय संत शिरोमणी दिव्य आत्मा सद्गुरु कबीर साहब का आविर्भाव बड़े ही अलौकिक ढंग से विक्रम संवत 1456 (सन 1398) की ज्येष्ठ पूर्णिमा सोमवार के दिन हुआ था। सद्गुरु कबीर के अवतरण के संबंध में यह साखी बहुत ही प्रसिद्ध है-
चौदह सौ पचपन साल गये चन्द्रवाद एक ठाठ गये
जेठ सुदी बरसायत को पुरनमासी तिथी प्रगट भये।
चौदहवीं-पंद्रहवी शताब्दी में ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद नये ऋतु वर्ष की शुरूआत मानी जाती है 1455 की समाप्ति एवं 1456 के प्रथम दिन। सर्वप्रथम श्रीमती नीमा देवी को लहरतारा सरोवर में सद्गुरु कबीर का दर्शन हुआ। नीरू जी जिस मार्ग से आ रहे थे उसी के बीच लहरतारा सरोवर पड़ता था जो लगभग अर्द्ध योजन की लंबाई में फैला हुआ था।
ज्येष्ठ पूर्णिमा की पूर्वाहन बेला थी। श्रीमती नीमा के साथ जीरू जी लहरतारा पूर्वी तट से 36 अर्द्ध उत्तर संभाग में पहुंचे तो वहां के सघन वृक्षों की मनोरम छाया को देखकर उन्होंने शाविकियों से कहा यहीं पालकी रखकर थोड़ा विश्राम कर लिया जाए।लहरतारा ताल के टीले के पास पालकी रख दी गई। नीरू जी पेड़ की शीतल छाया में विश्राम करने लगे। पक्षियों का कलरव मन को मुग्ध कर रहा था। अचानक नीरू की दृष्टि सरोवर की ओर गई। उन्होंने देखा कि प्रफुलित कमल की पंखुड़ियां भगवान सूर्य के प्रचंड तेज से मुरझा गई है। नीरू को ध्यान आया कि नीमा प्यासी तो नहीं है। उन्होंने पालकी के निकट जाकर पूछा, तुम्हें प्यास तो नहीं लगी है। यदि प्यास लगी हो तो चलो जल पी लो। नीमाजी नीरू की बात सुनकर बोली हां, मैं जल पीऊंगी।
नीरू जी नीमा जी को ले जाकर जल के निकट छोड़ दिए। नीमा जी ने मुखमार्जन करने के बाद प्रकृति अद्भुत छटा को निहारने लगी। नीमा जी का मन बरबस कमलों से भरे सरोवर की ओर आकर्षित होता जा रहा था। थोड़ी ही दूर सरोवर मे कमल पर एक नवजात शिशु अपने करकमलों से कमल नल को पकड़ हाथ-पैर फटकार रहा था। बार-बार पैरों को चला रहा था और शिशु के मस्तक पर नील नागराज अपने फणरूपी छत्रा से छाया कर रहे थे। बाल कमल-कलियों को देखकर किलकारी मार रहा था मानो देवी नीमा को अपनी ओर बुला रहा हो।
इस अद्भुत रहस्यमय बालक को देखकर पहले तो भयभीत हुए फिर आकर्षित हो गई। अधिक विलंब होने पर नीरू जी सरोवर के निकल आ पहुंचे और नीमा को ध्यानावस्था में देखकर पूछे किस ओर मन गया है। दो-चार बार कहने के बाद नीमा सचेत हुई और संकोचित होते हुए बोली, देखो, कमल फूलों पर यह कैसा बालक है जो अल्लाह पाक के नूर के भांति शोभायमान हो रहा है। इसे घर ले चलो। किंतु नीरू जी तैयार न थे। उन्होंने कहा कि बड़ी जगहंसाई होगी कि दुल्हन के साथ यह बच्चा कैसे आ गया। तभी आकाशवाणी हुई कि यह मेरी इच्छा से तुम्हें प्राप्त हुआ है। यह तुम्हारे यश को बढ़ाएगा एवं तीनों लोकों में इसकी प्रसिद्धि होगी। इस बालक के रूप में स्वयं परमात्मा की शक्ति है। ऐसा समझो-
अब हम अविगति से चलि आए, मेरा भेद मरम नहीं पाए।
आकाशवाणी सुनकर नीरू करबद्ध प्रार्थना करने लगे और बोले प्रभो यह बालक किसका है।आकाशवाणी ने कहा, यह बालक अनंत जन्म का योगी पुरुष है, इसे अपने साथ ले जाओ।यह सारा दृश्य संत रामानंद जी के शिष्य अष्टानंद जी देख रहे थे। उन्होंने यह बात जाकर रामानंद जी से बताई।
जब नीरू और नीमा बालक कबीर को अपने घर ले गए और उनके नामकरण के लिए मौलवी के पास गए तो इस्लामिक परंपरा के अनुसार कुरान से जब उनका नाम निकाला गया नाम निकला ‘कबीर’। मौलवी को संदेह हुआ कि एक छोटी जाति के साधारण परिवार के जुलाहे के छोटे से बच्चे के लिए ‘कबीर’ नाम भला कैसे रखा जाए, क्योंकि ‘कबीर’ का अर्थ होता है-सबसे बड़ा, महान, सबका सुहृद, सर्वशक्तिमान।
मौलवी ने बार-बार अलग-अलग पन्ने को पलटा, लेकिन सबमें एक ही नाम आया। तो उसने दूसरे को नाम निकालने को कहा, दूसरे के साथ भी वही घटना घटी। दूसरे ने तीसरे को, चैथे को, अगले को कहा, बार-बार प्रयत्न किया गया, लेकिन सबके साथ वही बात हुई। अंततः उन्होंने तय किया कि इस बच्चे का नाम कबीर ही होगा।
कबीर बड़े हैं, क्योंकि वे मानव धर्म मानवीय एकता के पोषक हैं और सबको मानव बनने की प्रेरणा देते हैं। कबीर को समझने के लिए कबीर को पढ़ने की आवश्यकता है।
परावाणी शक्ति से बच्चे का नाम कबीर ही रखा गया। इस प्रकार सद्गुरु कबीर साहब का आविर्भाव ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन इस धराधाम पर हुआ।
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